अफसोस होता है कई दफा मुझे खुद पर मैं बैठता हूं रो | हिंदी कविता

"अफसोस होता है कई दफा मुझे खुद पर मैं बैठता हूं रोने रातों में देखते ही देखते ये अफसोस मेरा हिम्मत में बदल जाता है मैं पाता हूं खोया हुआ खुद को,वक्त में किसी रेत सा वो वक्त मेरे हाथों से फिसल जाता है और आखिर में बचती है आखों के तले की वो टेहरी नमी मुझे एहसास होता है वक्त गुजर चुका अच्छा या बुरा मालूम नही वक्त है वो तो यूं ही गुजर जाता है और इस तरह वो क्रम मुझे फिर एक बार दोहराता है ©Yãsh BøRâ"

 अफसोस होता है कई दफा 
मुझे खुद पर
मैं बैठता हूं रोने रातों में
देखते ही देखते ये अफसोस मेरा
हिम्मत में बदल जाता है
मैं पाता हूं खोया हुआ 
खुद को,वक्त में
किसी रेत सा वो वक्त
मेरे हाथों से फिसल जाता है
और आखिर में बचती है
आखों के तले की 
वो टेहरी नमी
मुझे एहसास होता है
वक्त गुजर चुका 
अच्छा या बुरा मालूम नही
वक्त है वो तो यूं ही गुजर जाता है
और इस तरह वो क्रम मुझे 
फिर एक बार दोहराता है

©Yãsh BøRâ

अफसोस होता है कई दफा मुझे खुद पर मैं बैठता हूं रोने रातों में देखते ही देखते ये अफसोस मेरा हिम्मत में बदल जाता है मैं पाता हूं खोया हुआ खुद को,वक्त में किसी रेत सा वो वक्त मेरे हाथों से फिसल जाता है और आखिर में बचती है आखों के तले की वो टेहरी नमी मुझे एहसास होता है वक्त गुजर चुका अच्छा या बुरा मालूम नही वक्त है वो तो यूं ही गुजर जाता है और इस तरह वो क्रम मुझे फिर एक बार दोहराता है ©Yãsh BøRâ

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