सूनी पड़ी है शाम यहाँ भीड़ में खड़ी,
फीकी पड़ी है रात यहाँ देखो शबनमी ।।
लग रही है हाथ में खून की हिना ,
जीना यहाँ आसान नहीं है तेरे बिना ।।
है चल रहा महिना यहाँ मोहब्बत के जरा ,
मिरी गली में क्यों भला उदासी का शमा ।।
छूटा जो तेरे हाथ मेरे हाथ से जहाँ,
ना मिली मुझे कभी उम्मीद की वफ़ा।।
सुना है मन का घर मेरा तेरे बिना ,
सुन जा ओ मेरे हमसफर जरा ।।
कहाँ से लाऊँ में वो खुशी जो दूर है कहीं ,
खुद ही जला के बन गयी जिंदगी राख से भरी ।।
तु खुश रहे हमेशा जहाँ भी रहे ,
है सजदे में उठते हैं मेरे हाथ हर दफा ।।
तेरी ही यादों की है हवा सिलसिले यहाँ ,
तुझपर ये जाँ निसार मेरी जाँ हर जन्म यहाँ।।
©Mannkibaatein27
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