White दर – बदर भटक रहे इस जीने की जंग में किसी मे | हिंदी कविता

"White दर – बदर भटक रहे इस जीने की जंग में किसी में आशिक नहीं समझा किसी ने मीत नहीं समझा । १ सर्दो ओ तपन में भगा शहर दर शहर अंदर से टूटा , आंखे भर आई किसी ने मेरी बेरुखी का गीत नहीं समझा । २ हर हारी हुई बाजी हँस कर खेला हमनें बिन सफलता मेरे हौसलों को किसी ने जीत नहीं समझा । ३ अब हैं बेरोजगार तो क्या करें ? बिन मोहब्बत , बिन पैसे भी लहराए पताके किसी ने मेरी लौ को दीप नहीं समझा । ४ _प्रेमकवि_ ©Hari Creations official "

White दर – बदर भटक रहे इस जीने की जंग में किसी में आशिक नहीं समझा किसी ने मीत नहीं समझा । १ सर्दो ओ तपन में भगा शहर दर शहर अंदर से टूटा , आंखे भर आई किसी ने मेरी बेरुखी का गीत नहीं समझा । २ हर हारी हुई बाजी हँस कर खेला हमनें बिन सफलता मेरे हौसलों को किसी ने जीत नहीं समझा । ३ अब हैं बेरोजगार तो क्या करें ? बिन मोहब्बत , बिन पैसे भी लहराए पताके किसी ने मेरी लौ को दीप नहीं समझा । ४ _प्रेमकवि_ ©Hari Creations official

#बेरोजगार_आशिक़ #iharinyadav #banarasfilms #Poetry कुमार विश्वास की कविता

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