White दर – बदर भटक रहे इस जीने की जंग में
किसी में आशिक नहीं समझा
किसी ने मीत नहीं समझा । १
सर्दो ओ तपन में भगा शहर दर शहर
अंदर से टूटा , आंखे भर आई
किसी ने मेरी बेरुखी का गीत नहीं समझा । २
हर हारी हुई बाजी हँस कर खेला हमनें
बिन सफलता मेरे हौसलों को
किसी ने जीत नहीं समझा । ३
अब हैं बेरोजगार तो क्या करें ?
बिन मोहब्बत , बिन पैसे भी लहराए पताके
किसी ने मेरी लौ को दीप नहीं समझा । ४
_प्रेमकवि_
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#बेरोजगार_आशिक़ #iharinyadav #banarasfilms #Poetry कुमार विश्वास की कविता