विवश पड़ी है सारी कोशिशें
व्याकुलता क्या खूब बढ़ी है
प्रेम के सारे शब्द है भीगे
अर्थ फिर भी बहक रहे है
मन भी वंचित भाग रहे है
खुद से खुद को रोकूँ कैसे
ख्वाबो में तेरे लिपट लिपट कर
नजरो में तुझे ढूंढ रही हूं
कोशिशें भी विवश पड़ी सब
भवनाएं कह रही है
कब तक धीर धरु मेरे साजन
आंखों से तन भीग रही है
आ भी जाओ पास कन्हैया
राहे तुझको ढूंढ रही है
खोकर तुझमे तेरी राधा
इधर उधर अब भटक रही है
सुबह शाम बस नाम से तेरे
मस्तक अपनी सजा रही है
बिन तेरे अब मेरे कन्हैया
सारी खुशियां बिखर रही है
ले चलो मुझे संग अपने
हर पल मौत से कट रही है
तुम्हारी
राधा