जब जीने की ज़िद और मरने की शिद्दत बराबर
हो जाये, यकीन मानो दोस्त! ज़िन्दगी इक नया
आयाम आपसे साझा करने को आतुर जो जाये।
जब हारने और जितने की कश्मकश से ऊपर
उठ जाओ,यकीन मानो दोस्त! ज़िन्दगी की हर
गाँठें स्वतः ही खुलने को राजी हो जाये।
किसी की चाहत जब मन से स्थान्तरित हो कर
रुह में उतर जाए, हर "बंधनों" के बावजूद,
यकीन मानो दोस्त! ज़िन्दगी रुहानी मालूम हो जाये।
जब टहनियों से पत्तें सुख के गिरने लगे,
यकीन मानो दोस्त! नई हरी, नवजात पत्तियां
पुनः उस शज़र को हरे रंग से रंगने की साजिश कर जाये।
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