#OpenPoetry जैसे देर से ही सही पर बरसात में बादल ब

"#OpenPoetry जैसे देर से ही सही पर बरसात में बादल बरसते हैं.. चलो हम भी मिलने की एक और कोशिश करते हैं.., जैसे बिन बरसे भटकते बादलों ने, गर्मी में तप रहे धरती को समझा है.. चलो हम भी फिर एक-दूसरे को समझते हैं.. लबों को लबों से सिलते हैं... चलो एक बार फिर मिलते हैं... मेरी बेवकूफियों को तेरी समझदारी से सुलझातें हैं, चलो एक बार फिर एक साथ मुस्कुरातें हैं"

 #OpenPoetry जैसे देर से ही सही पर बरसात में बादल बरसते हैं.. चलो हम भी मिलने की एक और कोशिश करते हैं..,
जैसे बिन बरसे भटकते बादलों ने,
गर्मी में तप रहे धरती  को समझा है..
चलो हम भी फिर एक-दूसरे को समझते हैं..
लबों को लबों से सिलते हैं...
चलो एक बार फिर मिलते हैं...
मेरी बेवकूफियों को तेरी समझदारी से सुलझातें हैं, 
चलो एक बार फिर एक साथ मुस्कुरातें हैं

#OpenPoetry जैसे देर से ही सही पर बरसात में बादल बरसते हैं.. चलो हम भी मिलने की एक और कोशिश करते हैं.., जैसे बिन बरसे भटकते बादलों ने, गर्मी में तप रहे धरती को समझा है.. चलो हम भी फिर एक-दूसरे को समझते हैं.. लबों को लबों से सिलते हैं... चलो एक बार फिर मिलते हैं... मेरी बेवकूफियों को तेरी समझदारी से सुलझातें हैं, चलो एक बार फिर एक साथ मुस्कुरातें हैं

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