नशा (दोहे)
नशा करे कोई कभी, उसको घेरे रोग।
मन से भी विचलित नहीं, हैं कैसे ये लोग।।
तम्बाकू को ले रहे, समझे अपनी शान।
सभी जगह पर थूकते, खोते अपना मान।।
मदिरा भी शामिल वहीं, होश गँवाते लोग।
अपशब्दों से तौलते, दिखता उसमें रोग।।
डगमग-डगमग पैर हों, मन में भरे विकार।
रिश्तों की चिंता नहीं, डालें खूब दरार।।
कहती है सद्भावना, नशा करे बरबाद।
छोड़ सको तो छोड़ दो, हो जाओ आबाद।।
क्यों करना अब है नशा, कर दो इसका त्याग।
मुक्ति केंद्र भी हैं खुले, ले लो इसमें भाग।।
जीवन यह अनमोल है, मत करना उपहास।
सुखमय भी यह तब रहे, हो उसमें उल्लास।।
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देवेश दीक्षित
©Devesh Dixit
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नशा (दोहे)
नशा करे कोई कभी, उसको घेरे रोग।
मन से भी विचलित नहीं, हैं कैसे ये लोग।।
तम्बाकू को ले रहे, समझे अपनी शान।