तंग गलियाँ
तंग गलियों से ख़्वाब गुज़रते देखे हैं
सालों से सँभाले लम्हे बिखरते देखे हैं
मुझसे आँख चुराने लगे हैं लोग सभी
नुक्कड़ पर दो बातें करते देखे हैं
सब को दिख जाती है बाहर की चोट
दिलों के दर्द चेहरे पे उभरते देखे हैं
घर की चार दीवारों में जो थे महफूज़
अपनों की आहट से डरते देखे हैं
जो उन की आवाज़ से खिल जाते थे कभी
कोने में वो बदन सिहरते देखे हैं
©Shubhanshi Shukla
तंग गलियाँ
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