अक्सर रिश्ते कमजोर तब पड़ते हैं
जब रिश्तों के मध्य स्वार्थ रखते हैं,
एक दूजे पर कर नहीं पाते विश्वास,
गलती का हो नहीं पाता हमको एहसास ।
अपनी बात ही ऊपर रखते,
दूजे को हम तुच्छ समझते,
हो जाती रिश्तों की डोर कमजोर,,
ऐसे रिश्ते रह नहीं पाते स्नेह से सराबोर ।
करते जब हम अपनों को उपेक्षित,
रहते वो हम से अक्सर आपेक्षित,
तब रिश्ते कमजोर पड़ने लगते हैं,
अपने भी हमसे तब दूरी रखने लगते हैं।
रिश्ते कमजोर तब पड़ते हैं,
जान रिश्तों के मध्य हम दूजे को रखते हैं,
ना समझ पाते ,ना हम समझा पाते हैं,
तब अक्सर रिश्ते बिखर जाते हैं।
©Dayal "दीप, Goswami..