"ज़िंदगी में सारा झगड़ा ही ख़्वाहिशों का है घांव इतना गहरा है
बयां क्या करे
हम खुद निशाना बन गये
अब वार क्या करे
जान निकल गयी
मगर खुली रही आंखें
अब इससे ज्यादा उनका
इंतझार क्या करे
- Rahul Kavi"
ज़िंदगी में सारा झगड़ा ही ख़्वाहिशों का है घांव इतना गहरा है
बयां क्या करे
हम खुद निशाना बन गये
अब वार क्या करे
जान निकल गयी
मगर खुली रही आंखें
अब इससे ज्यादा उनका
इंतझार क्या करे
- Rahul Kavi