मिट्टी के घरौंदे अक्सर बिखर जाया करते हैं, जो मां | हिंदी Shayari

"मिट्टी के घरौंदे अक्सर बिखर जाया करते हैं, जो मां बाप ना हो तो बच्चे अक्सर बिछड़ जाया करते हैं। रेत की जमीं पर रेत से मैं घर बनाया करता हूं, अपने ही मिटाते, अपने ही बिखराते, मैं बार बार उसको ही सजाया करता हूं। वो गरीब भी होती है,अमीर भी होती है, वह पढ़ी लिखी, सड़क छाप भी होती है। यारों मां तो मां है वह सिर्फ मां होती है। ©#GUMNAAM BABA"

 मिट्टी के घरौंदे अक्सर बिखर जाया करते हैं,
जो मां बाप ना हो तो बच्चे अक्सर बिछड़ जाया करते हैं।





रेत की जमीं पर रेत से मैं घर बनाया करता हूं,
अपने ही मिटाते, अपने ही बिखराते,
 मैं बार बार उसको ही सजाया करता हूं।




वो गरीब भी होती है,अमीर भी होती है,
वह पढ़ी लिखी, सड़क छाप भी होती है।
यारों मां तो मां है वह सिर्फ मां होती है।

©#GUMNAAM BABA

मिट्टी के घरौंदे अक्सर बिखर जाया करते हैं, जो मां बाप ना हो तो बच्चे अक्सर बिछड़ जाया करते हैं। रेत की जमीं पर रेत से मैं घर बनाया करता हूं, अपने ही मिटाते, अपने ही बिखराते, मैं बार बार उसको ही सजाया करता हूं। वो गरीब भी होती है,अमीर भी होती है, वह पढ़ी लिखी, सड़क छाप भी होती है। यारों मां तो मां है वह सिर्फ मां होती है। ©#GUMNAAM BABA

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