White माना के उम्र ढल चुकी है
मगर दिल के किसी
छोटे से कोने में
शायद बचपन अभी बाकी है
तभी तो
बारिश की बूंदे
शबनम के मोती की तरह
पत्तों से ढलकती हैं
तो मन मयूर भी नाच उठता है
बाहों के पंख पसारे
दूर कहीं चारदीवारी पर
सरकते सिर हिलाते
लाल गिरगिट को देखकर
अनायास ही मन पूछता है
गिरगिट गिरगिट बारिश होगी?
फिर खुद ही हंसने लगता है
अपने इस अनसुलझे सवाल पर
शायद अभी भी बाकी है
दिल के किसी कोने में
प्यारा सा बचपन
तभी तो बाकी है
जीने की आस
मुस्कुराने का सामान
माना के उम्र ढल चुकी है
नमिता स्मृति
बोलांगीर ओडिशा
©Namita Panda
#love_shayari प्रेम कविता