White वो खंडहरों में ढुँढ़तें
हैं बज़्में-तरन्नुम
मीनारों की बुर्जियों
पे बनाते हैं आशियाँ
रखा किये महफूज
तिनकों को धुप से
आलम है के
ख़ुद ही जलाते हैं
आशियाँ
आँगन से दुर हो
गया सुरज शहर का
दीवारें क्युँ इतनी उँची
उठाते हैं आशियाँ
रंग दे के पत्थरों को
बे-जान कर दिया
उस पर ये अलामत
के सजाते हैं आशियाँ
'दीप'..✍🏿 शायर तेरा
©Dalip Kumar 'Deep'
🥀🥀 दीवारें क्युँ इतनी उँची उठाते हैं आशियाँ✍🏿🍂🍂 शायरी दर्द