हम तपिस में हैं और तुम जले जा रहे
तुम जमे बर्फ से हम गले जा रहे
तुमको छू कर ये पानी भी पावन हुआ
तुम्हे देख मौसम भी सावन हुआ
हम मोहब्बत में सबकुछ ही सच कह गए
पर तुमने ही हमको क्यों झुठला दिया
हम तुम्हारे लिए तो बने ही नही
फिर भी किश्मत ने तुमसे क्यों टकरा दिया
तोर कर चाँद तारे नहीं लाऊंगा
ना कोई महल मैं तो बनवाऊँगा
ऐसे वादों का बोलो तो क्या फायदा
गर मोहब्बत में ना हो कोई कायदा।
जब सपनों में अपनों को पाने लगे
नींद ने ही हमें फिर क्यों ठुकरा दिया
हम तुम्हारे लिए तो बने ही नहीं
फिर भी किश्मत नें तुमसे क्यों टकरा दिया
©अंकित दुबे
#peace