खाली पन्नो पर लिखकर उसे कई दफा मिटाया है
मैंने तुम्हारे नाम पर भी बहुत समय गवाया है।।।।
अब तो इश्क की रिवायत कुछ इस तरह बढ़ी है
मानो मेरी स्याही को भी तुमसे मोहब्बत हो रही है
तुम पर लिखे पंक्तियों के वो अलंकार
और मेरी लेखनी की वो स्याही "
मानो एक दूसरे के होना चाहते हो
" मोहब्बत में शिरकत कर मानो रोना चाहते हो "
बेशक नादान है"
जरूरत को मोहब्बत का नाम देकर, कब तक
ख्वाबों में बेतुकी ख्वाइशों को पिरोते जाएंगे ।
इश्क के बाद लिखने को तो महज दर्द ही रह जाएंगे'
ओर ये स्याही बिखरी होगी चन्द पन्नो पर
बेशक लिखना चाहेगी उन लम्हों पर।
पर वो दुबारा शिरकत कहा कर पाएंगे
बनकर धब्बा इश्क पर दागी ही तो कहलाएंगे।
©Akash Vats
इश्क और स्याही..
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