White कभी वो चाँद लगता है,कभी वो तारा लगता है। मुझ | हिंदी Love

"White कभी वो चाँद लगता है,कभी वो तारा लगता है। मुझे अब मेरा ये दिल भी,बड़ा आवारा लगता है। चले तो बहता है झरना,पहाड़ो की पारी सी है। उसी की धुन में पागल दिल,हुआ बंजारा लगता है। कभी वो चाँद लगता है,कभी वो तारा लगता है। हंसी अधरों पे है मोती,लगे जलती हुई ज्योति। लहर बन के समन्दर का,मन को है भिगो देती। उसी के होने से ही तो,जंहा ये प्यारा लगता है। कभी वो चाँद लगता है,कभी वो तारा लगता है। नज़र है आईना उसका,मुझे दर्पन सी लगती है। बिना सिंगार के भी वो,मुझे दुल्हन सी लगती है। जंहा क्या देखना है अब,जंहा वो सारा लगता है। कभी वो चाँद लगता है,कभी वो तारा लगता है। मुझे मिलता सुकु उससे,जब उनसे बात होती है। उसी से दिन सुरु होता,और उसी से रात होती है। उसी से है फ़िज़ा महकी,हंसी नजारा लगता है। कभी वो चाँद लगता है,कभी वो तारा लगता है। ©Anand singh बबुआन"

 White कभी वो चाँद लगता है,कभी वो तारा लगता है।
मुझे अब मेरा ये दिल भी,बड़ा आवारा लगता है।
चले तो बहता है झरना,पहाड़ो की पारी सी है।
उसी की धुन में पागल दिल,हुआ बंजारा लगता है।
कभी वो चाँद लगता है,कभी वो तारा लगता है।

हंसी अधरों पे है मोती,लगे जलती हुई ज्योति।
लहर बन के समन्दर का,मन को है भिगो देती।
उसी के होने से ही तो,जंहा ये प्यारा लगता है।
कभी वो चाँद लगता है,कभी वो तारा लगता है।

नज़र है आईना उसका,मुझे दर्पन सी लगती है।
बिना सिंगार के भी वो,मुझे दुल्हन सी लगती है।
जंहा क्या देखना है अब,जंहा वो सारा लगता है।
कभी वो चाँद लगता है,कभी वो तारा लगता है।

मुझे मिलता सुकु उससे,जब उनसे बात होती है।
उसी से दिन सुरु होता,और उसी से रात होती है।
उसी से है फ़िज़ा महकी,हंसी नजारा लगता है।
कभी वो चाँद लगता है,कभी वो तारा लगता है।

©Anand singh बबुआन

White कभी वो चाँद लगता है,कभी वो तारा लगता है। मुझे अब मेरा ये दिल भी,बड़ा आवारा लगता है। चले तो बहता है झरना,पहाड़ो की पारी सी है। उसी की धुन में पागल दिल,हुआ बंजारा लगता है। कभी वो चाँद लगता है,कभी वो तारा लगता है। हंसी अधरों पे है मोती,लगे जलती हुई ज्योति। लहर बन के समन्दर का,मन को है भिगो देती। उसी के होने से ही तो,जंहा ये प्यारा लगता है। कभी वो चाँद लगता है,कभी वो तारा लगता है। नज़र है आईना उसका,मुझे दर्पन सी लगती है। बिना सिंगार के भी वो,मुझे दुल्हन सी लगती है। जंहा क्या देखना है अब,जंहा वो सारा लगता है। कभी वो चाँद लगता है,कभी वो तारा लगता है। मुझे मिलता सुकु उससे,जब उनसे बात होती है। उसी से दिन सुरु होता,और उसी से रात होती है। उसी से है फ़िज़ा महकी,हंसी नजारा लगता है। कभी वो चाँद लगता है,कभी वो तारा लगता है। ©Anand singh बबुआन

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