रोला छन्द :-
राम सिया का रूप , लगे बिल्कुल वनवासी ।
मुख पे दिखता तेज , दूर सब दिखे उदासी ।।
कहे कोई न भूप , कहे सब ही संयासी ।
ऐसी लीला आज , दिखाये घट-घट वासी ।।
जन्म-मृत्यु का देख , एक मैं ही हूँ कारण ।
हर जीवन अनमोल , नहीं कोई साधारण ।।
सबमे मेरा वास , समझ ले यह ही प्राणी ।
तेरे मुख से नित्य , निकलती मेरी वाणी ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
रोला छन्द :-
राम सिया का रूप , लगे बिल्कुल वनवासी ।
मुख पे दिखता तेज , दूर सब दिखे उदासी ।।
कहे कोई न भूप , कहे सब ही संयासी ।
ऐसी लीला आज , दिखाये घट-घट वासी ।।