के हर रोज़ तुम गेरों से खुलकर हस्ते हो, बस हमें छो | हिंदी शायरी

"के हर रोज़ तुम गेरों से खुलकर हस्ते हो, बस हमें छोड़ कर, और एक हम है जो अंदर ही अंदर घबराते हैं तुमसे ज़रा सा मुंह मोड़ कर"

 के हर रोज़ तुम गेरों से खुलकर हस्ते हो, बस हमें छोड़ कर, और एक हम है जो अंदर ही अंदर घबराते हैं तुमसे ज़रा सा मुंह मोड़ कर

के हर रोज़ तुम गेरों से खुलकर हस्ते हो, बस हमें छोड़ कर, और एक हम है जो अंदर ही अंदर घबराते हैं तुमसे ज़रा सा मुंह मोड़ कर

#laughter

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