White मैं खुली आंखों के सच को बोलने से डरता हूं मै | हिंदी विचार

"White मैं खुली आंखों के सच को बोलने से डरता हूं मैं आंखें बंद करके मौन ध्यान में भी विचलित रहता हूं मेरा भय मेरे अंतर में पसरा हुआ है मेरा विश्वास भी अंतर में मौजूद है यदा कदा विश्वास से भय भयभीत हो जाता है यही वो क्षण है जब मन अपनी ताकत को स्वयं में देखता है यही वो क्षण जब चेतना का स्पर्श बिजली की तरह रगों में दौड़ता है एक बड़ा बदलाव अंतर में प्रकट होता है मन उत्तिष्ठत जाग्रत की चेतना बन जाता है सच निर्भीकता से अपने गंतव्य को स्पष्ट कर देता है विश्वास निर्भीकता को पोषित करता है मौन ध्यान में विश्वास खिलता है ©सुरेश सारस्वत"

 White मैं खुली आंखों के सच को बोलने से डरता हूं
मैं आंखें बंद करके मौन ध्यान में भी विचलित रहता हूं
मेरा भय मेरे अंतर में पसरा हुआ है
मेरा विश्वास भी अंतर में मौजूद है
यदा कदा विश्वास से भय भयभीत हो जाता है
यही वो क्षण है जब मन अपनी ताकत को स्वयं में देखता है
यही वो क्षण जब चेतना का स्पर्श बिजली की तरह रगों में दौड़ता है
 एक बड़ा बदलाव अंतर में प्रकट होता है 
मन उत्तिष्ठत जाग्रत की चेतना बन जाता है 
 सच निर्भीकता से अपने गंतव्य को स्पष्ट कर देता है
 विश्वास निर्भीकता को पोषित करता है 
मौन ध्यान में विश्वास खिलता है

©सुरेश सारस्वत

White मैं खुली आंखों के सच को बोलने से डरता हूं मैं आंखें बंद करके मौन ध्यान में भी विचलित रहता हूं मेरा भय मेरे अंतर में पसरा हुआ है मेरा विश्वास भी अंतर में मौजूद है यदा कदा विश्वास से भय भयभीत हो जाता है यही वो क्षण है जब मन अपनी ताकत को स्वयं में देखता है यही वो क्षण जब चेतना का स्पर्श बिजली की तरह रगों में दौड़ता है एक बड़ा बदलाव अंतर में प्रकट होता है मन उत्तिष्ठत जाग्रत की चेतना बन जाता है सच निर्भीकता से अपने गंतव्य को स्पष्ट कर देता है विश्वास निर्भीकता को पोषित करता है मौन ध्यान में विश्वास खिलता है ©सुरेश सारस्वत

# आज का विचार

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