आँख नम और मुस्कराते हैं।
लोग ऐसे भी दिन बिताते हैं।।
जो है पिंजरे के ही विहग पूछो।
कैसे पिंजरे के बिन बिताते हैं।।
पंख नाकाम साँस बेदम सी।
जी ना पाते हैं मर ना पाते हैं।।
आसमाँ भी लगे पराया सा।
उड़ ना पाते हैं घर ना पाते हैं।।
प्रीती एच प्रसाद 💫
©काव्यामृत कोष
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