आशीष दो हे भारती कर्तव्य पथ पर हम रहे।  जो भी मिले | हिंदी Poetry

"आशीष दो हे भारती कर्तव्य पथ पर हम रहे।  जो भी मिले हमको यहाँ,  सब मुस्कुराकर हम सहे। लाखों निराशाएँ यहाँ आकर है हमको घेरती। जितनी भी है खुशियाँ सभी,  अब हमसे मुंह है फेरती,  हे शारदे वरदान दो, इन पर विजय हम पा सके। हम ज्ञान से विज्ञान से,  हम ध्यान से अनभिग्न है।  हम धर्म से और कर्म से,  तेरे मर्म से अनभिग्न हैं। वागेश्वरी वरदान दो,  तम से कभी न हम डरें। ©Rahul Ashesh"

 आशीष दो हे भारती
कर्तव्य पथ पर हम रहे। 
जो भी मिले हमको यहाँ, 
सब मुस्कुराकर हम सहे।

लाखों निराशाएँ यहाँ
आकर है हमको घेरती।
जितनी भी है खुशियाँ सभी, 
अब हमसे मुंह है फेरती, 
हे शारदे वरदान दो,
इन पर विजय हम पा सके।

हम ज्ञान से विज्ञान से, 
हम ध्यान से अनभिग्न है। 
हम धर्म से और कर्म से, 
तेरे मर्म से अनभिग्न हैं।
वागेश्वरी वरदान दो, 
तम से कभी न हम डरें।

©Rahul Ashesh

आशीष दो हे भारती कर्तव्य पथ पर हम रहे।  जो भी मिले हमको यहाँ,  सब मुस्कुराकर हम सहे। लाखों निराशाएँ यहाँ आकर है हमको घेरती। जितनी भी है खुशियाँ सभी,  अब हमसे मुंह है फेरती,  हे शारदे वरदान दो, इन पर विजय हम पा सके। हम ज्ञान से विज्ञान से,  हम ध्यान से अनभिग्न है।  हम धर्म से और कर्म से,  तेरे मर्म से अनभिग्न हैं। वागेश्वरी वरदान दो,  तम से कभी न हम डरें। ©Rahul Ashesh

आशीष दो हे भारती 
कर्तव्य पथ पर हम रहे। 
जो भी मिले हमको यहाँ, 
सब मुस्कुराकर हम सहे।

लाखों निराशाएँ यहाँ
आकर है हमको घेरती।
जितनी भी है खुशियाँ सभी, 

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