वहीं सच जो छुप गया
मैं बताते - बताते फिर रुक गया
चला इस घर से उस घर को
बहुत करीब से जो देखा इस शहर को
वह चेहरे जो कभी थे मुझसे रूबरू
ना जाने क्यों अब बदले बदले से हो गए
मैं फिर गया , जैसे कोई दुख गया
वही गली , वही चौराहे
और वही तलाश
मिला नहीं जो कभी मुझे ,
है आज भी वही ख़ास
एक कलम , एक राज
दफन है जो दिल में
मैं लिखते लिखते फिर रुक गया
वहीं सच जो छुप गया
मैं बताते बताते फिर रुक गया...
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