बहौत आई वो मेरे इन गुज़रे दिनों में, बड़े नज़दीक स | हिंदी कविता

"बहौत आई वो मेरे इन गुज़रे दिनों में, बड़े नज़दीक से उसका हर रंग देखा मैंने, तराने मौत के होते हैं कितने ही शक्लों के, बड़ी गहराईयों से उसका हर राग जाना मैंने। छुआ मेरे जिस्म और मेरी रूह तक को, हर अक्स ने आकाश के उसका दर्द सहा है, जो सूरत से मुझे लगी बिल्कुल आम सी, सीरत से वही ज़ालिम बड़ा बेदर्द हुआ है। फ़िर लौट आएगी जो अमानत रही नहीं, कैसे लौटेगा वो जो खर्च हुआ है अंदर से, टूट कर बिखरा पड़ा है दिल दिमाग़ का बल, इस यातना की चींख है आंखो से बहते समंदर में। एक दौर तक मुझे इस तरह बेहाल करके, अपनी राहों को इसने मेरी राह से मोड़ दिया है, पर छोड़ गई है पिछे कई वजह झंझोड़ने की, जाते जाते हुए इसने मुझे और भी तोड़ दिया है। इस लड़ाई ने बख्शा ही नहीं जब जां तक को, मैं भी कैसे इसके आगे यूहीं हार मान लेता, आखिरी लम्हे तक सांस ले रहा था टूटकर भी, थी ज़िद मेरे अपनों की के मैं हर जवाब देता। काम आई दुआ-दवा और फ़िर से जी उठा मैं, लगा के जैसे दोबारा से इस ज़िंदगी में जन्मा हूं, हार गई मौत जो मुझे साथ ले जाने आई थी, मैंने कह दिया उसे के यार अभी तो मैं ज़िंदा हूं। ©Akash Kedia"

 बहौत आई वो मेरे इन गुज़रे दिनों में,
बड़े नज़दीक से उसका हर रंग देखा मैंने,
तराने मौत के होते हैं कितने ही शक्लों के,
बड़ी गहराईयों से उसका हर राग जाना मैंने।

छुआ मेरे जिस्म और मेरी रूह तक को,
हर अक्स ने आकाश के उसका दर्द सहा है,
जो सूरत से मुझे लगी बिल्कुल आम सी,
सीरत से वही ज़ालिम बड़ा बेदर्द हुआ है।

फ़िर लौट आएगी जो अमानत रही नहीं,
कैसे लौटेगा वो जो खर्च हुआ है अंदर से,
टूट कर बिखरा पड़ा है दिल दिमाग़ का बल,
इस यातना की चींख है आंखो से बहते समंदर में।

एक दौर तक मुझे इस तरह बेहाल करके,
अपनी राहों को इसने मेरी राह से मोड़ दिया है,
पर छोड़ गई है पिछे कई वजह झंझोड़ने की,
जाते जाते हुए इसने मुझे और भी तोड़ दिया है।

इस लड़ाई ने बख्शा ही नहीं जब जां तक को,
मैं भी कैसे इसके आगे यूहीं हार मान लेता,
आखिरी लम्हे तक सांस ले रहा था टूटकर भी,
थी ज़िद मेरे अपनों की के मैं हर जवाब देता।

काम आई दुआ-दवा और फ़िर से जी उठा मैं,
लगा के जैसे दोबारा से इस ज़िंदगी में जन्मा हूं,
हार गई मौत जो मुझे साथ ले जाने आई थी,
मैंने कह दिया उसे के यार अभी तो मैं ज़िंदा हूं।

©Akash Kedia

बहौत आई वो मेरे इन गुज़रे दिनों में, बड़े नज़दीक से उसका हर रंग देखा मैंने, तराने मौत के होते हैं कितने ही शक्लों के, बड़ी गहराईयों से उसका हर राग जाना मैंने। छुआ मेरे जिस्म और मेरी रूह तक को, हर अक्स ने आकाश के उसका दर्द सहा है, जो सूरत से मुझे लगी बिल्कुल आम सी, सीरत से वही ज़ालिम बड़ा बेदर्द हुआ है। फ़िर लौट आएगी जो अमानत रही नहीं, कैसे लौटेगा वो जो खर्च हुआ है अंदर से, टूट कर बिखरा पड़ा है दिल दिमाग़ का बल, इस यातना की चींख है आंखो से बहते समंदर में। एक दौर तक मुझे इस तरह बेहाल करके, अपनी राहों को इसने मेरी राह से मोड़ दिया है, पर छोड़ गई है पिछे कई वजह झंझोड़ने की, जाते जाते हुए इसने मुझे और भी तोड़ दिया है। इस लड़ाई ने बख्शा ही नहीं जब जां तक को, मैं भी कैसे इसके आगे यूहीं हार मान लेता, आखिरी लम्हे तक सांस ले रहा था टूटकर भी, थी ज़िद मेरे अपनों की के मैं हर जवाब देता। काम आई दुआ-दवा और फ़िर से जी उठा मैं, लगा के जैसे दोबारा से इस ज़िंदगी में जन्मा हूं, हार गई मौत जो मुझे साथ ले जाने आई थी, मैंने कह दिया उसे के यार अभी तो मैं ज़िंदा हूं। ©Akash Kedia

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