मेरे सीने की तपिश तुम्हे कहा नजर आयेगी ,
मेरी झूठी मुस्कान के पीछे की तकलीफ़ तुम्हे कहां महसूस हो पाएगी...
एक उम्र खर्च की है हमने दूसरो के दिलो को मिलाने में,
मेरे अंदर की खालिश ज़माने को कहां दिख पायेगी...
सुना है रकीब भी कायल है मेरी अधूरी मोहब्बत का,
उसे कौन बताए "प्रारब्ध" उसकी माशूका ही मेरे इश्क़ की गुनहगार केह लाएगी...
©Prarabdh Pathak
gunhgar
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