पल भर के लिए कल्पना कीजिए,
फोन, दूरदर्शन, अन्य सभी,
बिजली चलित उपकरणों,
को खुद से दूर कर दीजिए।
कितना भयावह दृश्य वो होगा,
कितना शांत वातावरण होगा।
उस शांति में भी एक भय होगा,
मन में बस एक सवाल होगा।
कैसे अब दिन में गुजारा होगा,
कैसे अब किसी से बात होगा।
कैसे गर्मियों में पानी ठंडा होगा,
कैसे ठंड में हीटर चालू होगा।
इन सवालों के बाद हमारे,
पास बस एक रास्ता होगा।
संस्कृति से अपनी जुड़ने का,
सिर्फ एक ही वास्ता होगा।
फोन के बगैर किताबों,
पर हम सब ध्यान देंगे।
फ्रिज के बगैर गगरे,
का ठंडा पानी पियेंगे।
त्योहार मनाने के लिए,
सभी से मिलने जायेंगे।
खेल-कूद कर अपनी,
स्फूर्ति और उम्र बढ़ाएंगे।
एक बार फिर दादी-नानी,
अपनी कहानियां सुनाएंगी।
पुरानी परंपराओं से हम,
अपने रिश्ते सुलझाएंगे।
बिन यंत्रों के अपने जीवन,
को हम खुशाहाल बनायेंगे।
बिन यंत्रों के भी जीवन में,
सुख-शांति हम पाएंगे।
©Aakansha shukla
कविता कोश