फूल
नारी को नर ने देखो,
क्या से क्या बना दिया।
देवी थीं कभी माना जिसे,
उसे दारू बना दिया।
उठी हवस जो दिल में,
लगा लब से नशा किया।
बेरूखी से फिर वहीं,
खाली जाम सा लुढ़का दिया।
गिरे जो अश्क आंखों से,
सिगरेट की आग से बुझा दिया।
जिस्म था जो उसे मानो,
ऐस्ट्रे की राख बना दिया।
खोला जो मुंह कभी उसने ,
समाज का ताला लगा दिया।
जो किया विरोध प्रदर्शन
तो सरेआम निर्वस्त्र किया ।
कैसा फूल है ये देखो जो,
मसला जाकर भी मुस्कुरा दिया।
तन की सुंदरता को तो सबने देखा
नारीमन की वेदना को किसने देखा।।
स्वरचित
स्नेहशर्मा ।
©#Sneha Sharma
#TiTLi