छप्पन भोग की थाली में भी मानो कमी रह जाती है अब द | हिंदी विचार
"छप्पन भोग की थाली में भी मानो कमी रह जाती है
अब दाल रोटी भी मुझे बहोत भाती है
कहने को तो सब है पर ये चार दिवार भी बहोत सताती है
अब घर से दूर रहकर , मुझे घर की याद आती है"
छप्पन भोग की थाली में भी मानो कमी रह जाती है
अब दाल रोटी भी मुझे बहोत भाती है
कहने को तो सब है पर ये चार दिवार भी बहोत सताती है
अब घर से दूर रहकर , मुझे घर की याद आती है