कमबख्त ये मर्ज है के जाता ही नहीं ।।
शायद उस हकीम की दवा बेअसर लगती है ।।
हर दफा लगा अब ठीक हो ही जाऊंगा ।।
मैं भी इश्क ए बिमारी से बचने वालों मे शामिल हो ही जाऊंगा ।।
पर उस हकीम ने हर दफा मर्ज को और बिगाड़ दिया ।।
और मुझे इश्क ए खुराक का तलबगार बना ही दिया ।।
शायद उसकी दवा में वफाई की मात्रा ज्यादा थी ।।
और मुझे उस दवा की तलब कब ज्यादा हो गई पता नहीं चला ।।
इशकजादे सा मैं एक मरिज जो कभी ठिक ना हो सका ।।
छोड़कर सारी दूनियादारी मेरा मर्ज मुझमें रहने लगा ।।
@लेखकRai
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