उसको मैं बुला नही शकता , उस पर अब मेरा हक क्या है | हिंदी कविता

"उसको मैं बुला नही शकता , उस पर अब मेरा हक क्या है ? वैसे भी वो कवरक्षेत्र से बाहर है , और फिर मेरी जरूरत भी क्या है ? कौन हूँ मैं , क्या हूँ मैं , बताओ तो , पुराने और नए 'सोयेब' में फर्क क्या है ? उसकी खुदकी एक परिवार है अब तो , भटके मुसाफिर की एहमियत क्या है ? क्या पता क्यों उम्मीद रखें है ये दिल , क्या इसे पता नही उनकी कैफियत क्या है ? मैं जिनकी खातिर सोता नही रातो में , उन्हें पता है कि ईश्कके रतजगे क्या है ??"

 उसको मैं बुला नही शकता ,
उस पर अब मेरा हक क्या है ?

वैसे भी वो कवरक्षेत्र से बाहर है ,
और फिर मेरी जरूरत भी क्या है ?

कौन हूँ मैं , क्या हूँ मैं , बताओ तो ,
पुराने और नए 'सोयेब' में फर्क क्या है ?

उसकी खुदकी एक परिवार है अब तो ,
भटके मुसाफिर की एहमियत क्या है ?

क्या पता क्यों उम्मीद रखें है ये दिल ,
क्या इसे पता नही उनकी कैफियत क्या है ?

मैं जिनकी खातिर सोता नही रातो में ,
उन्हें पता है कि ईश्कके रतजगे क्या है ??

उसको मैं बुला नही शकता , उस पर अब मेरा हक क्या है ? वैसे भी वो कवरक्षेत्र से बाहर है , और फिर मेरी जरूरत भी क्या है ? कौन हूँ मैं , क्या हूँ मैं , बताओ तो , पुराने और नए 'सोयेब' में फर्क क्या है ? उसकी खुदकी एक परिवार है अब तो , भटके मुसाफिर की एहमियत क्या है ? क्या पता क्यों उम्मीद रखें है ये दिल , क्या इसे पता नही उनकी कैफियत क्या है ? मैं जिनकी खातिर सोता नही रातो में , उन्हें पता है कि ईश्कके रतजगे क्या है ??

क्या है ?

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