भटकते रह गए बाहर वो अंदर तक नहीं पहुँचे उछलत | हिंदी शायरी Video

" भटकते रह गए बाहर वो अंदर तक नहीं पहुँचे उछलते हैं वो दरिया जो समंदर तक नहीं पहुँचे मेरे दस्तार से चिढ़ थी जिन्हें पागल वो सब के सब मेरा कद नापने आये ,मेरे सर तक नहीं पहुँचे ©Mehfil-e-Mohabbat "

भटकते रह गए बाहर वो अंदर तक नहीं पहुँचे उछलते हैं वो दरिया जो समंदर तक नहीं पहुँचे मेरे दस्तार से चिढ़ थी जिन्हें पागल वो सब के सब मेरा कद नापने आये ,मेरे सर तक नहीं पहुँचे ©Mehfil-e-Mohabbat

✍️♥️ रितेश राजवाड़ा भैया ♥️✍️

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