अपूर्णता के विकट सन्नाटे चोट करते रहे
निरंतर कानों पर ..
कि घाव छाले बन उग आए आत्मा पर ।
तुम्हारे पैरों तले अविरल बहती है मेरे अश्रुओं की नदी
और तुम नंगे पैर चलते जाते हो उस पर
जैसे कोई चिकना पुल हो
जो तुम्हारे पांव भीगने नहीं देता !
अपनी चुप्पी पढ़ लेने की चाह बांधे बैठी हूं मैं मन्नत के धागे में ..
उस निष्ठुर से जो निरंतर दोहराए जाने पर भी अपना नाम न सुन सका !
एक ही दिशा में चलते - चलते थक कर जड़ हुई मैं
कि दसों दिशाओं में से एक ही दिशा मेरी, जिसके दिग्पाल थे तुम ...।
मैंने जिसमें शिव खोजा
वह 'अनंत' था दरअसल... 'अधो' दिशा का ..
उसकी दृष्टि तो कभी पड़ी ही नहीं मेरे नगण्य मार्ग पर !
अभागिन भी इतनी कि प्रार्थनाओं के अर्घ्य भी कोई अन्य स्थान न पा सके ,
वे अपने ही दुखों की नदी में अर्पित किए गए!
न प्रार्थनाएं फलित हुईं,
न अश्रु ...
दोनों ही तुमसे अछूते रहे ।
मीनाक्षी
©Meenakshi
#srijanaatma