तुम नहीं हो" कब तक तसल्ली दू खुदको की तुम यही हो, | हिंदी कविता

""तुम नहीं हो" कब तक तसल्ली दू खुदको की तुम यही हो, जबकी अब तुम नहीं हो, रोता देख चुप कराने को तुम नहीं हो,, मेरी हर बात मान जाने को तुम नहीं हो, हर वक्त हिम्मत बढ़ाने को तुम नहीं हो, हां अब तुम नहीं हो, दूर तलक साथ निभाने को तुम नहीं हो, खुदसे बढ़कर मुझे चाहने को तुम नहीं हो, यार मुझे हसाने को तुम नहीं हो, मेरी गलती पर भी सर झुकाने को तुम नहीं हो, ©Vaibhabi singh"

 "तुम नहीं हो"
कब तक तसल्ली दू खुदको की तुम यही हो,
जबकी अब तुम नहीं हो,
रोता देख चुप कराने को तुम नहीं हो,,
मेरी हर बात मान जाने को तुम नहीं हो,
हर वक्त हिम्मत बढ़ाने को तुम नहीं हो,
हां अब तुम नहीं हो, 
दूर तलक साथ निभाने को तुम नहीं हो,
खुदसे बढ़कर मुझे चाहने को तुम नहीं हो,
यार मुझे हसाने को तुम नहीं हो,
मेरी गलती पर भी सर झुकाने को तुम नहीं हो,

©Vaibhabi singh

"तुम नहीं हो" कब तक तसल्ली दू खुदको की तुम यही हो, जबकी अब तुम नहीं हो, रोता देख चुप कराने को तुम नहीं हो,, मेरी हर बात मान जाने को तुम नहीं हो, हर वक्त हिम्मत बढ़ाने को तुम नहीं हो, हां अब तुम नहीं हो, दूर तलक साथ निभाने को तुम नहीं हो, खुदसे बढ़कर मुझे चाहने को तुम नहीं हो, यार मुझे हसाने को तुम नहीं हो, मेरी गलती पर भी सर झुकाने को तुम नहीं हो, ©Vaibhabi singh

तुम नहीं हो।।

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