शब्द समेट वाक्य बनाया
वाक्य बना के अर्थ को जाना
न निकला कोई निष्कर्ष यहाँ
मैंने सब कुछ व्यर्थ ही माना
ज़िन्दगी सिखायी कुछ ज्ञान की बातें
जो देतें हैं वहीं हम पाते
बैठ नाव पर कहे खैवया
मुझको तो बस तट तक हैं जाना
बाकी सब कुछ मैंने व्यर्थ ही माना
हर रूप में साथ मिले
कहे हम खुदा आज मिले
कर मन मे प्रण कभी तो
हर जगह बस एक ही को पाना
बाकी सब कुछ मैंने व्यर्थ ही माना
©Sonu Goyal
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कभी कभी हम ख़ुद की तलाश करते रह जाते है और जब हमें यूँ भटकता देख हमसे कोई सवाल करता हैं तो हमारे पास कोई जवाब नहीं होता हैं क्योंकि हम जिसे ढूँढते रहते हैं वो कोई और नहीं हम ही होते हैं
कभी किसी के सामने जिक्र भी करे लोग हँसकर टाल देते हैं पर कभी भी हमारे कहें उन शब्दों के पीछे छिपे भाव कोई कोई नहीं समझ पाते
कहना तो बहुत कुछ हैं पर ज्यादा बोलना भी पागलपन की निशानी समझती हैं दुनिया
बस मन में आया कि जाते जाते कुछ अच्छा बोल देते हैं
किसी को भी मेरी बातों से या मैंने ठेस पहुँचायी हो तो आपसे सिर्फ माफ़ी माँग सकती हूँ