मुसाफ़िर को पता था ना तेरे मंज़िल का ठिकाना , बस र | हिंदी शायरी
"मुसाफ़िर को पता था ना तेरे मंज़िल का ठिकाना ,
बस राहों में दर- दर भटकता जा रहा था।
ना खुशियां मिली थी ना गम का पता था ,
बस चाहत में पल - पल तड़पता जा रहा था ।।
@शिवा........"
मुसाफ़िर को पता था ना तेरे मंज़िल का ठिकाना ,
बस राहों में दर- दर भटकता जा रहा था।
ना खुशियां मिली थी ना गम का पता था ,
बस चाहत में पल - पल तड़पता जा रहा था ।।
@शिवा........