कसम तुम्हारी हद न पूछो बेखबर है, बेचैनियों की वज | हिंदी Shayari

"कसम तुम्हारी हद न पूछो बेखबर है, बेचैनियों की वजह मुक़म्मल न हुई, तो फिर बे-इन्तहा क्यों हुई!"

 कसम तुम्हारी हद न पूछो  
बेखबर है, बेचैनियों की वजह
मुक़म्मल न हुई, तो फिर बे-इन्तहा क्यों हुई!

कसम तुम्हारी हद न पूछो बेखबर है, बेचैनियों की वजह मुक़म्मल न हुई, तो फिर बे-इन्तहा क्यों हुई!

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