मुक्तक :- काँवड लेकर देख , कहें हम बम-बम भोले । कष | हिंदी कविता

"मुक्तक :- काँवड लेकर देख , कहें हम बम-बम भोले । कष्ट मिटे इस बार , द्वार हम तेरे डोले । कर दो अब उपकार , भक्त बन करते विनती- मुख में तो शिवराम , नाम की मिश्री घोले ।। निकट सरोवर था वही , जहाँ मिले थे आप । कुछ मत पूछो देखकर , मिटे सकल संताप । बुझी नयन की प्यास तो, हृदय उठा उल्लास- अब बातें याद कर , हमें दे पश्चाताप ।। कुछ कँवाड़िया आज , यहाँ पर करते दंगे । फिर भी मुख से देख , कहे वह हर हर गंगे । कहे प्रखर अब नाथ , उन्हें तो तुम ही देखो- मन के कितना साफ़ , और हैं कितने चंगे ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 मुक्तक :-
काँवड लेकर देख , कहें हम बम-बम भोले ।
कष्ट मिटे इस बार , द्वार हम तेरे डोले ।
कर दो अब उपकार , भक्त बन करते विनती-
मुख में तो शिवराम , नाम की मिश्री घोले ।।

निकट सरोवर था वही , जहाँ मिले थे आप ।
कुछ मत पूछो देखकर , मिटे सकल संताप ।
बुझी नयन की प्यास तो, हृदय उठा उल्लास-
अब बातें याद कर , हमें दे पश्चाताप ।।

कुछ कँवाड़िया आज , यहाँ पर करते दंगे ।
फिर भी मुख से देख , कहे वह हर हर गंगे ।
कहे प्रखर अब नाथ , उन्हें तो तुम ही देखो-
मन के कितना साफ़ , और हैं कितने चंगे ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मुक्तक :- काँवड लेकर देख , कहें हम बम-बम भोले । कष्ट मिटे इस बार , द्वार हम तेरे डोले । कर दो अब उपकार , भक्त बन करते विनती- मुख में तो शिवराम , नाम की मिश्री घोले ।। निकट सरोवर था वही , जहाँ मिले थे आप । कुछ मत पूछो देखकर , मिटे सकल संताप । बुझी नयन की प्यास तो, हृदय उठा उल्लास- अब बातें याद कर , हमें दे पश्चाताप ।। कुछ कँवाड़िया आज , यहाँ पर करते दंगे । फिर भी मुख से देख , कहे वह हर हर गंगे । कहे प्रखर अब नाथ , उन्हें तो तुम ही देखो- मन के कितना साफ़ , और हैं कितने चंगे ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मुक्तक :-
काँवड लेकर देख , कहें हम बम-बम भोले ।
कष्ट मिटे इस बार , द्वार हम तेरे डोले ।
कर दो अब उपकार , भक्त बन करते विनती-
मुख में तो शिवराम , नाम की मिश्री घोले ।।

निकट सरोवर था वही , जहाँ मिले थे आप ।
कुछ मत पूछो देखकर , मिटे सकल संताप ।

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