चलते चलते थक गया हूँ मैं ऐ पंखे सोच रहा हूँ लटक ज | हिंदी शायरी

"चलते चलते थक गया हूँ मैं ऐ पंखे सोच रहा हूँ लटक जाऊं मैं दिन रात के आंसूओ से ज्यादा यहाँ सूकून हैं हर बार शिकरत सहन करू, नहीं इतना कहाँ जूनून हैं ©fateh singh sodha"

 चलते चलते थक गया हूँ मैं

ऐ पंखे सोच रहा हूँ लटक जाऊं मैं 

दिन रात के आंसूओ से ज्यादा यहाँ सूकून हैं

हर बार शिकरत सहन करू, नहीं इतना कहाँ जूनून हैं

©fateh singh sodha

चलते चलते थक गया हूँ मैं ऐ पंखे सोच रहा हूँ लटक जाऊं मैं दिन रात के आंसूओ से ज्यादा यहाँ सूकून हैं हर बार शिकरत सहन करू, नहीं इतना कहाँ जूनून हैं ©fateh singh sodha

#walkingalone

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