खबरे-तहय्युरे-इश्क सुन , ना जुनूँ रहा , ना परी रही | हिंदी कविता

"खबरे-तहय्युरे-इश्क सुन , ना जुनूँ रहा , ना परी रही । ना तो मैं रहा , ना तो तू रहा , जो रही सो बेखबरी रही ।। चली सिम्ते-ग़ैब से एक हवा , कि चमन सुरूर का जल गया । मगर एक शाखे-निहाले-गम , जिसे दिल कहे सो हरी रही ।। वो अजब घड़ी थी कि जिस घड़ी , लिया दर्श-नुश्खा-ए-इश्क में । के किताब अक्ल की ताक पर , जो धरी थी यूँ ही धरी रही ।। किया खाक आतिशे इश्क ने , दिल-ए-बे-नवाए 'सिराज' को । ना खतर रहा , ना हजर रहा , मगर एक बेख़तरी रही ।।"

 खबरे-तहय्युरे-इश्क सुन ,
ना जुनूँ रहा , ना परी रही ।
ना तो मैं रहा , ना तो तू रहा ,
जो रही सो बेखबरी रही ।।

चली सिम्ते-ग़ैब से एक हवा ,
कि चमन सुरूर का जल गया ।
मगर एक शाखे-निहाले-गम ,
जिसे दिल कहे सो हरी रही ।।

वो अजब घड़ी थी कि जिस घड़ी ,
लिया दर्श-नुश्खा-ए-इश्क में ।
के किताब अक्ल की ताक पर ,
जो धरी थी यूँ ही धरी रही ।।

किया खाक आतिशे इश्क ने ,
दिल-ए-बे-नवाए 'सिराज' को ।
ना खतर रहा , ना हजर रहा ,
मगर एक बेख़तरी रही ।।

खबरे-तहय्युरे-इश्क सुन , ना जुनूँ रहा , ना परी रही । ना तो मैं रहा , ना तो तू रहा , जो रही सो बेखबरी रही ।। चली सिम्ते-ग़ैब से एक हवा , कि चमन सुरूर का जल गया । मगर एक शाखे-निहाले-गम , जिसे दिल कहे सो हरी रही ।। वो अजब घड़ी थी कि जिस घड़ी , लिया दर्श-नुश्खा-ए-इश्क में । के किताब अक्ल की ताक पर , जो धरी थी यूँ ही धरी रही ।। किया खाक आतिशे इश्क ने , दिल-ए-बे-नवाए 'सिराज' को । ना खतर रहा , ना हजर रहा , मगर एक बेख़तरी रही ।।

Gajhal By Siraj Aurangabadi

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