खबरे-तहय्युरे-इश्क सुन ,
ना जुनूँ रहा , ना परी रही ।
ना तो मैं रहा , ना तो तू रहा ,
जो रही सो बेखबरी रही ।।
चली सिम्ते-ग़ैब से एक हवा ,
कि चमन सुरूर का जल गया ।
मगर एक शाखे-निहाले-गम ,
जिसे दिल कहे सो हरी रही ।।
वो अजब घड़ी थी कि जिस घड़ी ,
लिया दर्श-नुश्खा-ए-इश्क में ।
के किताब अक्ल की ताक पर ,
जो धरी थी यूँ ही धरी रही ।।
किया खाक आतिशे इश्क ने ,
दिल-ए-बे-नवाए 'सिराज' को ।
ना खतर रहा , ना हजर रहा ,
मगर एक बेख़तरी रही ।।
Gajhal By Siraj Aurangabadi