गीत
कुछ भी नहीं है तेरा,कुछ भी नहीं है मेरा।
मतलब के सारे नाते,कुछ दिन का है यह डेरा।
चंद दिन की जिंदगानी,
हंसकरके तू बिता दे।
आ बैठ कभी आकर,
दिल की मुझे सुना दे।
रह जायेगा यहीं पर,कोठी,महल ये तेरा।
कुछ भी नहीं है तेरा, कुछ भी नहीं है मेरा।
दिल खोलकर तू जी ले,
कुछ जिंदगी में अपनी।
कुछ वक्त तू बिता दे,
बस बंदगी में अपनी।
खुद से भी खुद मिलाकर,पसरा क्यों मन अँधेरा।
कुछ भी नहीं है तेरा, कुछ भी नहीं है मेरा।
तुझको नहीं है फुर्सत,
फुर्सत नहीं है मुझको।
अनमोल जिंदगी यह,
मिलनी नहीं फिर हमको,
काहे का तेरा मेरा,बस कुछ दिनों का डेरा।
कुछ भी नहीं है तेरा,कुछ भी नहीं है मेरा।
पीटेंगे तेरी छाती,
रोयेंगे तेरे साथी,
जायेगा तू अकेला,
छूटेंगे पोते नाती।
चिर नींद में जो सोया देखेगा कब सवेरा।
कुछ भी नहीं है तेरा कुछ भी नहीं है मेरा।
गीतकार
नवल किशोर शर्मा 'नवल'
बिलारी मुरादाबाद
©N.K. Sharma
#alone