एक बार फिर से रुबरु होना मंजूर था चौखट पर सेज सजे | हिंदी Poetry

"एक बार फिर से रुबरु होना मंजूर था चौखट पर सेज सजे थे मौत के कितनों के मुक्कमल जहा मे मैं थी वो अश्कों मे देखना मंजूर था ©chandni"

 एक बार फिर से रुबरु होना मंजूर था
चौखट पर सेज सजे थे
मौत के


कितनों के मुक्कमल जहा मे मैं
थी वो अश्कों मे देखना
मंजूर था

©chandni

एक बार फिर से रुबरु होना मंजूर था चौखट पर सेज सजे थे मौत के कितनों के मुक्कमल जहा मे मैं थी वो अश्कों मे देखना मंजूर था ©chandni

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