तुम थोड़े से थे गुमसुम,
जब मिले थे शाम की चौखट,
हम भी थे खड़े वही,
पर थोड़े से बिखरे हम ।
रात की एक परछाईं थी,
और पहलू में चांद खड़ा,
हमने सोचा तुमको छू ले,
पर थोड़े से बिखरे हम ।
चांद की परछाई सी थी तुम ,
ख़्वाब पुराने नई थी तुम,
बादल छटते चांद को देखूं,
पर घूँघट थी आँखे नम ।
वर्षो बीते ख़्वाब भी बदले
रंगत बदली चाहत बदली
बदले बदले तुम भी लगती,
आज मिले थे शाम की चौखट
थोड़े से बिखरे थे हम ,थोड़ी सी बदली थी तुम ।
©Sanjana Shukla
थोड़े से बिखरे थे हम, थोड़ी सी बदली थी तुम
#MereKhayaal