खुद को भी कुछ समय देकर देखा मैंने तो मेरी कलम की | हिंदी कविता

"खुद को भी कुछ समय देकर देखा मैंने तो मेरी कलम की स्याही को मुकाम हासिल हो गया दुनिया को उजाले बांटने चला था मैं मूर्ख और मेरे अंदर के अंधेरे का ज्ञान हासिल हो गया फिर अपने दर्द भरी कहानियों के फटे पन्ने भी पढ़े तो कुछ खूबसूरत पंक्तियों का इंतजाम हासिल हो गया दूसरों के दर्द का हमदर्द बनने चला था मैं मूर्ख और मेरे दिल में तड़पता हुआ राम हासिल हो गया ।#ऋषिकेश"

 खुद को भी कुछ समय देकर देखा मैंने 
तो मेरी कलम की स्याही को मुकाम हासिल हो गया 
दुनिया को उजाले बांटने चला था मैं मूर्ख 
और मेरे अंदर के अंधेरे का ज्ञान हासिल हो गया
 
फिर अपने दर्द भरी कहानियों के फटे पन्ने भी पढ़े 
तो कुछ खूबसूरत पंक्तियों का इंतजाम हासिल हो गया 
दूसरों के दर्द का हमदर्द बनने चला था मैं मूर्ख 
और मेरे दिल में तड़पता हुआ राम हासिल हो गया ।#ऋषिकेश

खुद को भी कुछ समय देकर देखा मैंने तो मेरी कलम की स्याही को मुकाम हासिल हो गया दुनिया को उजाले बांटने चला था मैं मूर्ख और मेरे अंदर के अंधेरे का ज्ञान हासिल हो गया फिर अपने दर्द भरी कहानियों के फटे पन्ने भी पढ़े तो कुछ खूबसूरत पंक्तियों का इंतजाम हासिल हो गया दूसरों के दर्द का हमदर्द बनने चला था मैं मूर्ख और मेरे दिल में तड़पता हुआ राम हासिल हो गया ।#ऋषिकेश

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