भोर हो या संध्या आसमां ओढ़े सिन्दूरी चोली,
आसमां ने ओढ़ी है चादर नीली नीली,
हरियाली धरती के आंचल मे , लहराती सरसों पीली पीली,
रंगो वैसे,,,
जैसे समंदर रँगता अपने जीवों के रँग से,
जैसे धरती रंगती पलाश के फूलों से,
जैसे आसमां रँगता अरुणिमा के प्रकाश से,
वैसे रंगो
गलती को क्षमा के रँग से ,
घृणा को प्रेम के रँग से,
शत्रुता को मित्रता के रँग से,
सबके जीवन को उल्लास के रँग से,
हर घर मे बने खुशियों की रंगोली,,
ओढ़े हम सब सदभाव की चोली,
आओ खेले प्रेम की होली,,
आओ खेले जीवन के वास्तविक रंगो की होली,
आओ खेले प्रेम की होली।
©यशस्वी तिवारी
#Colors