"खुदा भी बेफिक्र सा है
जब ज़मीन पर महबूब दिखता है।
वो मासूम सी शक्ल में हर जगह फिरता है।
वो मेरे हर लम्हे का हिसाब रखता है
वादे तो हज़ार करता है
पर सच्चाई से परहेज़ करता है
इश्क के हर मंज़िल को पार करता है
पर खुशी मिल जाने से उसका इन्तकाम करता है
वक्त भी साथ दे दे तो
हर मुश्किल भी तार देता है
सारी महफ़िल भी रूसवा हो जाए तो
वो अपनी प्रीत पर विश्वास करता है"