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कहाँ तलाशूँ में सुकून…
कहाँ तलाशूँ में सुकून ,
सुकून की तलाश में कभी-कभी,
मैं अपना रुख़ जंगलों की ओर मोड़ देता हूँ ।
कभी-कभी दौड़ पड़ता हूँ ,
अकेला किसी ख़ाली सुनसान रोड पर ,
मोह कुछ पल के लिए जब ,
मैं इस संसार से तोड़ देता हूँ ।
मुझे प्रकृति से प्यार हो गया है जैसे ,
मुझे संगीत से लगाव हो गया है जैसे,
मुझे तालाबों, पोखरों ,
के पास बैठना अच्छा लगने लगा है ।
जब देखता हूँ लोगों के दोहरे स्वभाव को ,
एक में प्यार , दूसरे में ईर्ष्या का भाव को ,
मुझे ख़ुद से प्यार करने के सिवा ,
नहीं लोगों का साथ सच्चा लगने लगा है ।
मैं नहीं करता बहस लोगों से अब,
वो जैसा सोचे मेरे बारे में,
मैं वैसा उनकी सोच पर उन्हें छोड़ देता हूँ ।
कहाँ तलाशूँ में सुकून ,
सुकून की तलाश में कभी-कभी,
मैं अपना रुख़ जंगलों की ओर मोड़ देता हूँ ।
©Ravindra Singh
कहाँ तलाशूँ में सुकून…
#sad_shayari