रात दिन एक प्रयत्न और दिल मे लिए एक कशिश। चाहे गिर | हिंदी कविता

"रात दिन एक प्रयत्न और दिल मे लिए एक कशिश। चाहे गिरु कितनी भी बार हमेशा रहेगी उठने कि कोशिश। जो टूटे एक पैर पग डंडी से चलूँगा। आये सेलाब या तेज आंधी कभी नहीं रुकूंगा। लक्ष्य कि लालसा में अलास्य से बचने कि कोशिश। चाहे गिरु कितनी भी बार रहेगी हमेशा उठने कि कोशिश ©Dr Ravi Lamba"

 रात दिन एक प्रयत्न और दिल मे लिए एक कशिश।
चाहे गिरु कितनी भी बार हमेशा रहेगी उठने कि कोशिश।
जो टूटे एक पैर पग डंडी से चलूँगा।
आये सेलाब या तेज आंधी कभी नहीं रुकूंगा।
लक्ष्य कि लालसा में अलास्य से बचने कि कोशिश।
चाहे गिरु कितनी भी बार रहेगी हमेशा उठने कि कोशिश

©Dr Ravi Lamba

रात दिन एक प्रयत्न और दिल मे लिए एक कशिश। चाहे गिरु कितनी भी बार हमेशा रहेगी उठने कि कोशिश। जो टूटे एक पैर पग डंडी से चलूँगा। आये सेलाब या तेज आंधी कभी नहीं रुकूंगा। लक्ष्य कि लालसा में अलास्य से बचने कि कोशिश। चाहे गिरु कितनी भी बार रहेगी हमेशा उठने कि कोशिश ©Dr Ravi Lamba

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