सुनो!
फ़र्क पड़ता है?
मेरे ना होने से,
बिना बात किए सोने से,
मिले बिना रहने से,
मेरे आँसुओं के बहने से,
ख़्वाबों के झड़ जाने से,
बात-बात पे लड़ जाने से,
तुम्हें फ़र्क पड़ता है?
काश कि तुम्हें फ़र्क पड़ता,
और तुम थोड़ा सा सोचते,
काश कि मेरे लम्हे तन्हा ना गुज़रते,
काश कि ये तुम्हें ना कोसते!
पर जब गल्ति हम दोनों की नहीं है,
तो आखिर गलत कौन है?
क्या ये वक्त का खेल है,
कि हम दोनों ही मौन हैं?
farq padta hai?
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