भुलाना इतना आसान होता,
तो यादों का नामो निशान न होता।
कीमत जो समझ पाते हम जज़्बातों की,
तो मोहब्बत लफ्ज़ यूँ बदनाम न होता।
फ़र्क़ क्या पड़ता है किसी के होने न होने से?
लेकिन किसी के चले जाने से
ज़िंदगी जीना इतना आसान नही होता। i
©swati singh bhadauria
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