काई रात गुजरी हैं, इस अंधेरे में, तुम थोडा सा नूर | हिंदी Poetry

"काई रात गुजरी हैं, इस अंधेरे में, तुम थोडा सा नूर ले आओगे?मेरे तकिये गीले हैं अशुओ से, तुम अपनी गोद में सुलओगे?सुना हैं बाग हैं तुम्हारे अगन मे! मेरे ल-हशल बच्चपन को वो झुला दिखाओगे? मैने खोई है अपनी हर प्यारी चीज, क्या तुम फिर भी अपनी किसमत आजमाओगे? ©Saumya"

 काई रात गुजरी हैं, इस अंधेरे में, तुम थोडा सा नूर ले आओगे?मेरे तकिये गीले हैं अशुओ से, तुम अपनी गोद में सुलओगे?सुना हैं बाग हैं तुम्हारे अगन मे! मेरे ल-हशल बच्चपन को वो झुला दिखाओगे? मैने खोई है अपनी हर प्यारी चीज, क्या तुम फिर भी अपनी किसमत आजमाओगे?

©Saumya

काई रात गुजरी हैं, इस अंधेरे में, तुम थोडा सा नूर ले आओगे?मेरे तकिये गीले हैं अशुओ से, तुम अपनी गोद में सुलओगे?सुना हैं बाग हैं तुम्हारे अगन मे! मेरे ल-हशल बच्चपन को वो झुला दिखाओगे? मैने खोई है अपनी हर प्यारी चीज, क्या तुम फिर भी अपनी किसमत आजमाओगे? ©Saumya

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